Monday, October 03, 2011

बाल साहित्य संसार की एक और किरण : नया सवेरा

-डा० जगदीश व्योम

त्रिलोक सिंह ठकुरेला हिन्दी बालसाहित्य के कुशल रचनाकार हैं, नवगीत पर उनकी बहुत अच्छी पकड़ है। "नया सवेरा" ठकुरेला जी की बाल कविताओं का संग्रह है जो राजस्थानी ग्रंथागार जोधपुर से प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह में कुल अट्ठाईस बाल कविताएँ हैं जो पूरी तरह से बाल मनोविज्ञान के अनुरूप हैं साथ ही इन कविताओं में दैनिक जीवन में काम आने वाली अत्यन्त शिक्षाप्रद बातों को बातों बातों में बच्चों तक पहुँचाने का सफल प्रयास ठकुरेला जी ने किया है।
बच्चों के लिए प्रतिदिन खेलना बहुत जरूरी है विशेषकर आज के कम्यूटर और टेलिविजन के घोर युग में खेलना और भी महत्त्वपूर्ण हो गया है-

खेलो खेल शाम को प्रतिदिन
तन और मन होंगे बलवान
ठीक समय से खाना खाओ
फिर से पढ़ो बढ़ाओ ज्ञान । (पृ०- 20)


"नया सवेरा लाना तुम" कविता में सूर्य के माध्यम से कवि ने बच्चों को आलसी न होने की शिक्षा यूँ ही बातों बातों में दी है-
जो चलते हैं सदा निरंतर
बाजी जीत वही पाते
और आलसी रहते पीछे
मन मसोस कर पछताते। (पृ०- 21)


"मीठी बातें" कविता के द्वारा कवि ने मीठी बोली का महत्व बताया है-
मीठी मीठी बातें कहकर
सब कितना सुख पाते
मीठी मीठी बातें सुनकर
सब अपने हो जाते । (पृ०- 22)

समूचे ब्रह्माण्ड में पृथ्वी के अतिरिक्त और भी ऐसे ग्रह होंगे जहाँ जीवन हो सकता है, ये जिज्ञासा हमेशा रही है, बच्चे के माध्यम से इसे खेल खेल में कहलवाकर ठकुरेला जी ने अपने कवि की गहन और विस्तृत सोच का परिचय दिया है-
कोई ग्रह तो होगा ऐसा
जिस पर होगी बस्ती
माँ ! बच्चों के साथ वहाँ
मैं खूब करूँगा मस्ती । (पृ०- 24)

तितली को देखकर तर तरह के प्रश्न बच्चों के मन में उठते रहते हैं, ऐेसे प्रश्न कविता में उठाकर कवि बच्चों में अतिरिक्त जिज्ञासा जाग्रत करना चाहता है-
जाने किस मस्ती में डूबी
फिरती है इठलाती
आखिर किसे खोजती रहती
हरदम दौड़ लगाती (पृ०- 25)

रेल के माध्यम से कवि ने निरंतर चलते रहने की प्रेरणा बच्चों को दी है-
रेल सभी से कहती जैसे
रुको न, दौड़ लगाओ
कठिन नहीं है कोई मंजिल
मेहनत से सब पाओ । (पृ०- 26)

पेड़ मानव के लिये कितने उपयोगी हैं, इस बात को कितनी सहजता से इस कविता में कह दिया गया है-
पर्यावरण संतुलित रखते
मेघ बुलाकर लाते
छाया देकर तेज धूप से
सबको पेड़ बचाते । (पृ०- 28)

पानी का दूसरा नाम ही जीवन है, बच्चों को ये बताना बहुत आवश्यक है, कवि ने इसे भी बहुत सहजता से कविता में प्रस्तुत किया है-
पानी से ही फसलें उगतीं
हर वन उपवन फलता
पानी से ही इस वसुधा पर
सबका जीवन चलता । (पृ०- 39)

मेघों की चर्चा कवि ने एकदम निराले अंदाज में की है-
कभी खेत में, कभी बाग में
कभी गाँव में जाते
कहीं निकलते सहमे सहमे
कहीं दहाड़ लगाते । (पृ०- 43)

नया सवेरा की कविताएँ बच्चों के अनुरूप तो हैं ही इनकी यह भी विशेषता है कि ये कविताएँ पूरी तरह से लय और तुक में हैं, बच्चों की कविताओं में लय का ध्यान विशेष रूप से रखना ही होता है, ठकुरेला जी की सभी बाल कविताएँ इस विचार से बहुत परिपक्व बाल कविताएँ हैं। बच्चे इन कविताओं को पसंद करेंगे और अपने विद्यालयों में होने वाले समारोहों में इन्हें याद कर करके प्रस्तुत करेंगे, यही इन कविताओं की सफलता है और कवि ठकुरेला से यह अपेक्षा है कि भविष्य में वे और भी सुन्दर बाल मनोविज्ञान के अनुरूप कविताएँ और बालगीत हिन्दी साहित्य संसार को देंगे। संग्रह का मुद्रण त्रुटिहीन है, आवरण भी आकर्षक है । यह संग्रह बाल साहित्य संसार की एक नई किरण बनकर उभरेगा, ऐसा मेरा विश्वास है।

नया सवेरा
प्रकाशक - राजस्थानी ग्रंथागार, सोजती गेट, जोधपुर (राज०)
प्रथम संस्करण- 2011
कवि- त्रिलोक सिंह ठकुरेला
मूल्य- 50=00
ISBN 978-81-96103-20-3

समीक्षा-

डा० जगदीश व्योम

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