कविता मनुष्य को मनुष्य बने रहने देने में अहं भूमिका निभाती है, यही कारण है कि घोर कलयुग (मशीन युग) में भी कविता उसी गति से लिखी और पढ़ी जा रही है जिस गति से पहले लिखी जाती थी। एक प्रश्न और जो प्रायः साहित्यिक पुस्तकों को लेकर उठाया जाता है कि क्या इण्टरनेट का बढ़ता स्वरूप मुद्रित पुस्तकों के संसार को काल कवलित कर देगा ? इस विषयक यह स्पष्ट जान लेना चाहिये कि मुद्रित पुस्तकों का महत्त्व कभी कम नहीं होगा। मुद्रित पुस्तके अपनी जगह हैं और वेब पुस्तकें और जालघर अपनी जगह। पुस्तकों का निरन्तर प्रकाशित होना इसी बात का परिचायक है। कविवर हरिराम पथिक का " आधी ज़िन्दगी पूरा सच " मुक्तक संग्रह अपने भव्य कलेवर के साथ प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह के मुक्तक कवि की समय समय की अनुभूतियों के शब्द-चित्र हैं जिन्हें सरल और सहज भाषा में कवि ने प्रस्तुत किया है। अपनी मिट्टी से जुड़े रहकर इंसान बने रहना एक कवि का सर्वोपरि धर्म है यही आकांक्षा कवि के इस मुक्तक में झलक रही है-
जी करता है दान करूँ नित, हो जाऊँ धनवान बड़ा
सबको बाहों का संबल दे, बन जाऊँ बलवान बड़ा
चाह नहीं है नाम कमाऊँ, आसमान पर चमकूँ मैं-
अपनी मिट्टी से जुड़ जाऊँ, हो जाऊँ इंसान बड़ा ।
गाँव और शहर के बीच बहुत गहरा रिश्ता है। गाँव अधुनातन बनने की चाह में शहर की ओर पलायन करता है तो शहर भी लोक संस्कृति, लोक परम्परा और लोक शब्दावली रूपी संजीवनी के लिए गाँवों पर ही निर्भर रहता है, इस तथ्य को गाँव और शहर दोनों को समझना ही होगा। जो लोग निजी स्वार्थ सिद्धि हेतु गाँव व शहर के मध्य अलगाव और नफ़रत के बीज बोते हैं, उन्हें कवि ने इस मुक्तक के माध्यम से बहुत बड़ा संकेत किया है-
हर शहर का गाँव से मजबूत नाता है
गाँव का हर रास्ता भी शहर जाता है
गाँव के दिल में न घोलो ज़हर नफ़रत का-
गाँव ही तो हर शहर का जन्मदाता है ।
पथिक जी के इस मुक्तक संग्रह के मुक्तक जन सामान्य के दैनिक जीवन में काम आने वाले सूक्त वाक्य हैं जिनके द्वारा अपनी भाषा को धारदार बनाने में तथा अपने भावों को सम्प्रेषित करने में विशेष मदद मिलेगी। कहा जाता है कि यदि किसी कविता के किसी अंश का प्रयोग जन सामान्य करने लगे तो समझना चाहिये कि कवि ने सफल कविता का सृजन किया है। पथिक जी का मुक्तक संग्रह इस कसौटी पर खरा उतरेगा ऐसा मेरा सहज विश्वास है।
डा० जगदीश व्योम
जी करता है दान करूँ नित, हो जाऊँ धनवान बड़ा
सबको बाहों का संबल दे, बन जाऊँ बलवान बड़ा
चाह नहीं है नाम कमाऊँ, आसमान पर चमकूँ मैं-
अपनी मिट्टी से जुड़ जाऊँ, हो जाऊँ इंसान बड़ा ।
गाँव और शहर के बीच बहुत गहरा रिश्ता है। गाँव अधुनातन बनने की चाह में शहर की ओर पलायन करता है तो शहर भी लोक संस्कृति, लोक परम्परा और लोक शब्दावली रूपी संजीवनी के लिए गाँवों पर ही निर्भर रहता है, इस तथ्य को गाँव और शहर दोनों को समझना ही होगा। जो लोग निजी स्वार्थ सिद्धि हेतु गाँव व शहर के मध्य अलगाव और नफ़रत के बीज बोते हैं, उन्हें कवि ने इस मुक्तक के माध्यम से बहुत बड़ा संकेत किया है-
हर शहर का गाँव से मजबूत नाता है
गाँव का हर रास्ता भी शहर जाता है
गाँव के दिल में न घोलो ज़हर नफ़रत का-
गाँव ही तो हर शहर का जन्मदाता है ।
पथिक जी के इस मुक्तक संग्रह के मुक्तक जन सामान्य के दैनिक जीवन में काम आने वाले सूक्त वाक्य हैं जिनके द्वारा अपनी भाषा को धारदार बनाने में तथा अपने भावों को सम्प्रेषित करने में विशेष मदद मिलेगी। कहा जाता है कि यदि किसी कविता के किसी अंश का प्रयोग जन सामान्य करने लगे तो समझना चाहिये कि कवि ने सफल कविता का सृजन किया है। पथिक जी का मुक्तक संग्रह इस कसौटी पर खरा उतरेगा ऐसा मेरा सहज विश्वास है।
डा० जगदीश व्योम
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