नर्मदांचल के वरिष्ठ कवि हरगोविन्द शर्मा के काव्य-संग्रह "अभिज्ञा" में १०१ कविताएँ हैं। इन कविताओं में कवि ने अपने लम्बे जीवनानुभवों को विविध बिम्बों और प्रतीकों के माध्यम से प्रस्तुत किया है। कवि की चिंता कहीं सांस्क॓तिक अवमूल्यन को लेकर उभरी है तो कहीं लोक जीवन की विसंगतियाँ उसे उद्वेलित करती हैं। कुल मिलाकर कवि एक अच्छे समाज और सकारात्मक सोच का पक्षधर है। प्रकृति चित्रण में कवि का मन खूब रमा है। शृंगारपरक कविताओं के सृजन में कवि सिद्धहस्त है। छन्द, लय और प्रवाह ऐसा कि कविता नर्मदा की लहरों-सी अठखेलियाँ करती हुई एक विशिष्ट भाव-भंगिमा के साथ प्रवाहित होती हुई सी प्रतीत होती है। कवि ने अनेक प्रकार के छन्दों के सफल प्रयोग "अभिज्ञा" की कविताओं में किए हैं। कविताओं की प्रवाहात्मकता देखते ही बनती है-
पांखुरी खिली नहीं
रूप घट भरा नहीं
मकरन्दी मलयज की
वासन्ती गन्ध नहीं।
तंद्रिलता नयन बीच
अर्चन - उपासना
दिवा सपन आँखों में
जीवन की साधना।
इसी प्रकार "वतन" कविता में कवि ने सधे हुए छंद में लय एवं प्रवाह के साथ-साथ शब्द-मैत्री पर विशेष ध्यान दिया है-
नयन याचक दरश सुख सपन के लिये
रूप आसक्ति मानस तपन के लिये
चिर मनःस्ताप केवल पतन के लिये
श्वास प्रश्वास है जग मनन के लिये।।
संग्रह की "पछुआई पवन" कविता पढ़ते ही एक भावचित्र सहज ही उभरने लगता है-
पवन चले पछुआई पूरब के पौर पौर
महलों से कुटिया तक काँप रहा छोर-छोर।।
निर्वसना अंगों की झाईं है गुलाब सी
रुपहले अधरों की गंध है पराग सी
जन मन को मोह रही नाच रही ठौर ठौर
पवन चले पछुआई पूरब के पौर पौर ।।
कुल मिलाकर अभिज्ञा की कविताएँ कवि के जीवनानुभवों की रचनात्मक अभिसंचित पूँजी है जिनमें सदियों से अविछिन्न चली आ रही पारंपरिक काव्यशैली की अनूठी गंध है। इन कविताओं को पढ़कर एक विशेष प्रकार की अनुभूति होती है। मध्य-प्रदेश लेखक संघ प्रकाशन द्वारा प्रकाशित यह काव्य-संग्रह पठनीय एवं प्रशंसनीय है।
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अभिज्ञा (काव्य-संग्रह)
कवि- हरगोबिन्द शर्मा
प्रकाशक- मध्यप्रदेश लेखक संघ, भोपाल
संस्करण- जून-२००८